Book Title: Updesh Prasad
Author(s): Vijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
Publisher: Vijaynitisuri Jain Library

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Page 600
________________ व्याख्यान ६१ : : ५७१ : घड़ों में डाला जिससे वह जल तद्दन स्वच्छ, स्वादिष्ट और शीतल तथा सर्व जल की अपेक्षा अधिक सुन्दर हो गया । फिर उसमें सुगंधी पदार्थ डाल कर उसको सुवासित किया । फिर उस जल को मंत्रीने राजा के रक्षक को देकर कहा कियह जल अवसर आने पर राजा को पीलाना | फिर राजाने जब पीने के लिये जल मांगा तो उसने वह जल भेट किया । उस जल का पान कर उसमें अलौकिक गुण देख कर राजाने पूछा कि ऐसा अद्भुत स्वादिष्ट जल कहां से आया ? जलरक्षकने उत्तर दिया कि हे स्वामी ! यह जल मंत्रीने मुझे दिया है । राजाने मंत्री से पूछा तो मंत्रीने कहा कि - हे स्वामी ! यदि आप मुझे अभयदान दें तो मैं इस जल का वृत्तान्त सुनाऊँ । यह सुन कर राजाने उसे अभय दिया तो मंत्रीने कहा कि हे राजा ! यह पानी उसी खाई का है । राजाने इस बात पर विश्वास नहीं किया तो मंत्रीने राजा के समक्ष उस खाई का जल मंगवा कर पूर्व कही विधि अनुसार जल को स्वादिष्ट बनाया । यह देख कर राजा विस्मित होकर बोला कि हे मंत्री ! तूने यह रीति क्यों कर जाना १ मंत्रीने कहा कि - हे देव ! जिनागम सुनने से तथा सद्दहवा से इन सर्व पुद्गलों के परिणाम का ज्ञान होता है । हे राजा ! पुद्गलों की शक्ति अर्चित्य है । अनेक प्रकार का परिणाम पाना इनका स्वभाव है परन्तु ये सब स्वभाव तीरो भाव से वर्तते हैं । इन सब स्वभावों को ज्ञानी ज्ञान से जान सकते हैं।

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