Book Title: Updesh Prasad
Author(s): Vijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
Publisher: Vijaynitisuri Jain Library

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Page 598
________________ व्याख्यान ६९ : : ५६९ : करना वह सामान्य ज्ञान । छट्ठा गुण अपोह अर्थात् अन्वय व्यतिरेकादिक से विशेष विचार करना यह विशेष ज्ञान । सातवां गुण अर्थविज्ञान अर्थात् उहा और अपोह के योग से मोह, संदेह, विपर्यास ( उलटी मति ) आदि का नाश होनेरूप जो ज्ञान प्रकट हो वह । और आठवां गुण तत्त्वज्ञान अर्थात् यह ऐसा ही है इस प्रकार का निश्चय होना । ये आठ बुद्धि के गुण हैं । इन आठों गुणों से युक्त दर्शन ( समकित ) होता है क्योंकि उससे ( समकित से ) सर्व पदार्थ के परमार्थ की पर्यालोचना हो सकती है । इस विषय निम्न लिखित सुबुद्धि का दृष्टान्त है- सुबुद्धि मंत्री का दृष्टान्त चम्पानगरी के जितशत्रु नामक राजा के सुबुद्धि नामक मंत्री था । वह जैनधर्मी था । एकदा राजा मनोहर षड् रसमय स्वादिष्ट रसवती करा कर अनेकों सामन्त, मंत्री आदि सहित भोजन करने बैठा । खाते खाते स्वादलुब्ध राजा “ अहो ! यह रसवती कैसी स्वादिष्ट है ? अहो ! इसकी सुगंध कैसी सरस है ? " आदि वाक्यों से बारंबार उसकी प्रशंसा करने लगा । उस समय सुबुद्धि मंत्री के अतिरिक्त अन्य सर्व सामन्त आदि भी रसोई के स्वाद आदि की प्रशंसा करने लगा । सुबुद्धि ने तो अच्छी या बुरी कुछ नहीं कहा, अतः राजाने उससे पूछा कि - "हे मंत्री ! तुम इस रसोई

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