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__ श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
पुर में (कलशा में) रहनेवाली और घोष (शब्द) करती हुई सेना को जिसने एक बांये हाथ से ही रुंध दिया वह यह वीरक सचमुच महाक्षत्रिय है। इस लिये यह मेरी केतुमंजरी नामक पुत्री के लिये योग्य वर है। ऐसा कह कर कृष्णने उस वीरक के साथ उसकी इच्छा नहीं होने पर भी केतुमंजरी का विवाह कर दिया । वीरकने भी कृष्ण के भय से उसके साथ विवाह कर उसको अपने घेर लेजा उसकी दास के समान सेवा करने लगा। कई दिन व्यतीत हो जाने पर एक दिन कृष्णने वीरक से पूछा कि-मेरी पुत्री तेरी आज्ञा का पालन करती है या नहीं ? वीरकने उत्तर दिया कि-हे राजा ! मैं ही आप की पुत्री के आज्ञानुसार चलता हूँ। यह सुन कर कृष्णने कृत्रिम क्रोध कर उसको बहुत धिक्कारा, अतः उस वीरकने घर जाकर उसने कहा कि-हे स्त्री ! तू क्यों बैठी हुई है ? खेड़ तैयार कर, घर में से कचरा बहार निकाल, पानी भर कर ला और जल्दी रसोई तैयार कर । इस प्रकार कभी भी नहीं सुने हुए शब्द सुन कर उसने कहा कि-हे स्वामी ! मैं इन में से कोई भी काम नहीं जानती। यह सुन कर वीरकने रस्से से उसको खूब पीटा जिससे वह रोती रोती उसके पिता के पास गई और उससे सारी बात निवेदन की । इस पर उसने उत्तर दिया कि-तूने दासीपन मांगा था, अतः मैंने तुझे दासीपन दिया है। उसने उत्तर दिया कि-हे पिता ! अब मैं उसके घर नहीं जाउंगी परन्तु