________________
व्याख्यान ५८ :
: ५२७ :
गाड़ी के पहिये के चीले में मरे हुए पानी को मैंने अपने बांये पैर से रोक दिया था और पैर के वापस हटा लेने पर उसका प्रवाह नदी के सदृश चलने लगा था तथा एक बार पानी के वर्तन में मक्खिये गुंजार कर रही थी उनको मैंने उस वर्तन के मुंह पर हाथ रख रोक दी थी। इस प्रकार कृष्ण कुछ हंसी उड़ाते सभा में गये । वहां सर्व सभासदो के समक्ष उन्होंने कहा कि-हे सभासदो ! वीरक सालवी का पराक्रम अति अद्भुत हैं तथा उसका कुल भी ऊँचा है । सुनो-- येन रक्तस्फटो नागो, निवसन् बदरीवने । पातितः क्षितौ शस्त्रेण, क्षत्रियःसैष वैमहान् ॥१॥ येन चक्रकृता गंगा, वहन्ती कलुषोदकम् । धारिता वामपादेन, क्षत्रियः सैष वै महान् ॥२॥ येन घोषवती सेना, वसन्ती कलशीपुरे । धारिता वामहस्तेन, क्षत्रियः सैष वै महान् ॥३॥
भावार्थ:-बद्रिका वन में रहनेवाले रक्तफणवाले नाग को जिसने शस्त्रद्वारा मार कर पृथ्वी पर गिरा दिया वह यह वीरक महाक्षत्रिय है। अपितु जिसने चक्र से बनाई हुई गंगा नदी को जो कि-मेला पानी बहा रही थी, बायें पैर से रोक दिया वह यह वीरक महाक्षत्रिय है, तथा कलशी