________________
: ५२६ :
श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : दासी बनना ? तुम्हारे मन का जो मनोरथ हो बतलाओ । इस पर उन कन्याओंने उत्तर दिया कि-हे पिता ! आप के प्रसाद से हम रानियें बनना चाहती हैं। यह सुन कर कृष्णने कहा कि-हे पुत्रियों ! यदि तुम्हारी यह ही इच्छा हो तो श्रीनेमिनाथ के पास जाकर दीक्षा ग्रहण करो । यह सुन कर उन सब कन्याओंने प्रभु के पास जाकर चारित्र ग्रहण किया । एक बार एक रानीने अपनी पुत्री को सिखाया कि-जब तू तेरे पिता के पास प्रणाम करने को जाय तब यदि वह तुझे रानी या दासी होने के लिये पूछे तो तू जवाब देना कि-मैं दासी होना चाहती हूँ। बाद में जब वह कन्या प्रणाम करने गई तो कृष्णने उस पुत्री को पूछा तो उसने अपने माता के सिखाये अनुसार उत्तर दिया । यह सुन कर कृष्णने विचार किया कि-इस पुत्री की तरह अन्य पुत्रीयें भी संसार में पड़ेगी, अतः यदि मैं इसको सचमुच दासी ही बना, तो फिर दूसरी पुत्रिये संसार में नहीं पड़ेगी। ऐसा विचार कर उसने ऐकान्त में वीरक सालवी से पूछा कि-हे वीरक ! यदि तूने पहले किसी भी समय कोई अद्भुत कार्य किया हो तो बतला। वीरकने उत्तर दिया कि-हे स्वामी ! मैने कोई ऐसा अद्भुत कार्य तो नहीं किया परन्तु एक बार मैं शरीर चिन्ता करने को गया था तो वहां मैंने एक बैर के वृक्ष के सब से ऊँचे सिरे पर बैठे हुए एक सर्प को एक ही पत्थर से मार कर पृथ्वी पर गिरा दिया था। तथा वर्षाऋतु में