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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
मालवदेश में उञ्जयिनी नगरी में विचारधवल नामक राजा था जिसके पास चार रत्न थे । उन में एक सूपकार रत्न ( रसोइया) था जो खानेवाले की इच्छानुसार भोजन बनाता था तथा भोजन करने के पश्चात् उसी क्षण (तुरन्त ही), क्षणभर पश्चात् अथवा एक पहर, अथवा एक दिन, अथवा एक पक्ष, अथवा एक मास, अथवा एक वर्ष पश्चात् जब भूख लगने की इच्छा हो उसी समय भूख लगें परन्तु इससे पहिले या पश्चात् भूख नहीं लगती ऐसी रसोई व रसवती बनाता था । दूसरा रत्न शय्यापाल था । वह शय्या को ऐसी बिछाता कि-सोनेवाला के इच्छा घड़ी में, पहर में या जब जागृत होने की हो तब उसी क्षण वह सोनेवाला बिना किसी की प्रेरणा के जागृत हो जाता था। तीसरा नररत्न अंगमर्दक था । वह एक सेर तैल से लगा कर पांच सेर, दस सेर तक तैल का अंग में मर्दन कर समाता था और फिर जितना तैल समाता उतना ही वापस निकाल लेता था परन्तु समाते या निकालते समय शरीर में किंचित्मात्र मी कष्ट नहीं होने देता था। चोथा नररत्न भांडागारिक (भंडारी) था । वह भंडार इस प्रकार बनाता था कि-उसमें रक्खा हुआ धन उसके अतिरिक्त अन्य कोई भी देख या ले नहीं सकता था, उसी प्रकार उस भंडार को न तो कोई खोद सकता था न उस में अग्नि ही लगा सकता था । इन चार रत्नों से चिन्तित कार्य करता हुआ विचारधवल राजा