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व्याख्यान ५९ वां
___ कारक समकित तथा कार्यं गुरोर्वाक्यं, यथा प्रवचनाच्छ्रुतम् । तपोव्रतादिकं सर्व, सेवनात् कारको मतः ॥१॥
भावार्थ:- इस प्रकार प्रवचन (सिद्धान्त) से सुना हो उसी प्रकार गुरु के वचनों को अंगीकार कर तप, व्रत आदि सर्व आचरण करना चाहिये । ऐसा करना कारक समकित कहलाता है। इस सम्बन्ध में नीचे लिखी काकजंघ और कोकाश की कथा प्रसिद्ध है___ काकजंघ और कोकाश की कथा
सोपारक नगर में विक्रम नामक राजा था । उसी नगर में सोमिल नामक एक रथकार (सुथार) रहता था। वह सब रथकारों का अग्रेसर (अगुआ) था । उसके देविल नामक पुत्र था तथा उसी सोमिल की दासी के ब्राह्मण से उत्पन्न हुआ कोकाश नामक पुत्र था । वह सोमिल अपने पुत्र देविल को सदैव बड़े प्रयास से अपनी विद्या सिखाया करता था । कहा हैं किपितृभिस्ताडितः पुत्रः, शिष्यश्च गुरुशिक्षितः । घनाहतं सुवर्णं च, जायते जनमण्डनम् ॥१॥