Book Title: Updesh Prasad
Author(s): Vijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
Publisher: Vijaynitisuri Jain Library

View full book text
Previous | Next

Page 585
________________ श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : केवलिदिक्खिय सासाण, जक्खणि जक्खा य नोऽभव्वा ॥३॥ भावार्थ:-समय पर सुपात्रदान, सम्यक्प्रकार से विशुद्ध बोधिलाभ तथा अन्त में (मृत्युसमय) समाधिमरण इतने अभव्य प्राणी नहीं पासकते । इन्द्रपन, चक्रवर्तीपन, पांच अनुत्तर विमान का वास, लोकांतिक देवपन, ये भी अभव्य प्राणी नहीं पासकते । शलाका पुरुषपन, नारद पन, त्रायस्त्रिंशत् देवपन, चौदह पूर्वधारीपन, इन्द्रपन, केवली पास दीक्षा तथा शासन के जक्ष अथवा जक्षिणीपन ये भी अभव्य प्राणी नहीं पा सकते ।। संगम य कालसूरि, कविला अंगार पालया दो वि। नोजीव गुट्ठमाहिल उदायिनिवमारओ अभवा ॥१॥ ___ भावार्थ:--एक रात्री में श्रीमहावीरस्वामी को एकवीस प्राणांत उपसर्ग करनेवाला संगम देव, कालसौकरिक कसाई, कपिला दासी, अंगारमर्दक आचार्य, दो पालक (पांचसो मुनियों को पीलानेवाला पालक तथा कृष्ण का पुत्र पालक), नोजीव का स्थापक गोष्ठमाहिल तथा उदायीराजा को मारनेवाला विनयरत्न साधु-ये इस चोवीशी में अभव्य हुए हैं। __ चार सामायिक (समकित, श्रुत, देशविरति, सर्वविरति) अभव्य प्राणी कदाच उत्कृष्ट पाये तो श्रुत सामायिक पा

Loading...

Page Navigation
1 ... 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606