Book Title: Updesh Prasad
Author(s): Vijaylakshmisuri, Sumitrasinh Lodha
Publisher: Vijaynitisuri Jain Library

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Page 592
________________ व्याख्यान ६१ : : ५६३ : उसे छुड़ा कर दुःख रहित किया । फिर वे सर्व कुमार ऐसा भवनाटक देख कर, चारित्र ग्रहण कर केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में गये । अंगारमर्दक आचार्य बहार से विरागता धारण करता था। उसके पांच सो शिष्योंने मोक्ष प्राप्त किया परन्तु वह भव में भटकता रहा, अतः दीपक समकितवाले की सेवा नहीं करना चाहिये और शुभ मतिवाले जीवों को शुद्ध श्रद्धा धारण करनी चाहिये । इत्युपदेशप्रासादे चतुर्थस्तंभे षष्टितम व्याख्यानम् ॥ ६० ॥ व्याख्यान ६१ वां समकित का वस्तुस्वरूप मिथ्यात्वपुद्गलाभावात् , प्रदेशाः सन्ति चात्मनः। ते सर्वे स्वस्थतां नीते, सम्यक्त्वं वस्तु तद्भवेत् ॥१॥ भावार्थ:-आत्मप्रदेश के साथ रहनेवाले मिथ्यात्वमोहनी के पुद्गलों का अभाव (क्षय) होने से आत्मा के सर्व प्रदेश जो स्वस्थता को प्राप्त करते हैं वे वस्तुता से समकित कहलाता हैं ।

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