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व्याख्यान ५८
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सूरिकृत नेमिनाथ चरित्र में श्रीकृष्ण के पांच भव बतलाये गये हैं । तत्व तो केवली ही जानते हैं। तथा वसुदेवहिंडि नामक ग्रन्थ में ऐसा कहा है कि-कृष्ण तीसरा नरक से निकल कर भरतक्षेत्र में शतद्वार नगर का मांडलिक राजा हो दीक्षा ग्रहण कर, तीर्थकरनामकर्म उपार्जन कर वैमानिक देवता हो वहां से चव कर, बारहवां अमम नामक तीर्थकर होगा । इस प्रकार श्रीकृष्ण वासुदेव शुद्ध श्रद्धा गुण से भव का पार पायेंगे ।
यह रोचक गुण (समकित) श्रेणिक राजा आदि को भी तीर्थकरादि पद देनेवाला प्रसिद्ध है ।
पृथ्वी पर देवता तथा मनुष्य जिन के गुणों का वर्णन करते हैं वे कृष्ण त्रिकरण शुद्धि से श्रीजैनशासन में भक्तिवाले हुए हैं।
इत्युपदेशप्रासादे चतुर्थस्तंभेऽष्टपञ्चाशत्तम
व्याख्यानम् ॥ ५८॥