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श्री उपदेशप्रासाद भापान्तर :
दिया कि-हे स्वामी ! आप सावधान होकर यहीं पर कोई न जान सके इस प्रकार छिप रहिये । मैं ग्राम में किसी रथकार के घर जाकर किली बना कर लाता हूँ। ऐसा कह कर भयरहित कोकाश राजा के मानेता रथकार के घर गया
और उससे किली बनाने के लिये विशेष प्रकार के ओजार मांगे । वह रथकार एक रथ का पहिया बना रहा था जिसको छोड़ कर उसके मांगे हुए ओजार लाने के लिये वह अपने घर के अन्दर गया । वह ओजार लेकर आया इतनी देर में तो कोकाशने रथ का पहिया उससे भी अधिक सुन्दर दिव्य चक्र (पहिया) बना दिया कि-जो पहिया हाथ में से नीचे रखते ही बिना धक्का दिये हुए ही अपने आप चल सके । उस रथकारने ऐसी असाधारण कला देख कर मन में विचार किया कि-सचमुच यह कोकाश ही है, उसके अतिरिक्त दूसरा इस पृथ्वी पर ऐसी कला जाननेवाला कौन है ? कोई नहीं । इस प्रकार निश्चय कर वह रथकार किसी बहाने से वहां के राजा के पास पहुंचा और उससे कहा कि-हे राजा! पुण्य के योग से मेरे घर पर अकस्मात् कोकाश आया हुआ है । यह सुन कर राजाने अपने सेवकों को भेज कर कोकाश को बुला कर पूछा कि-तेरा राजा कहां है ? तो बुद्धिमान कोकाशने मृत्यु के भय से तथा कुछ मन में विचार कर अपने राजा का पत्ता बतला दिया, अतः कनकप्रभ राजाने सैन्य सहित काकजंघ राजा के पास जाकर उसको