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व्याख्यान ५९ :
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बांध विडंबनापूर्वक काष्ठ के पींजरे में डाल दियां । कालिंगदेश का राजा उसके वैर के कारण उसे खाने को भी कुछ नहीं देता था, अतः अनेकों पुरुषों को दया आने से.राजा के भय से कौओं को बलिदान देने के बहाने वे उसको पिंड (बलिदान) देने लगे। इस प्रकार काकपिंड से प्राणवृत्ति करता हुआ और जिसने कभी भी स्वप्न में भी नहीं देखा था ऐसा काकजंघ राजा ऐसे कष्ट के समय में भी धैर्य रख अपने पूर्व कर्म की ही निन्दा करता हुआ दिवस निर्गमन करने लगा । वह अपनी आत्मा को कहता कि
को इत्थ सया सुहिओ, कस्स व लच्छी थिराइ पिम्माइं । को मच्चुणा न गहिओ, को गिद्धो नेव विसएसु ॥१॥
भावार्थ:-इस विश्व में निरन्तर सुखी कौन है ? किस की लक्ष्मी और प्रेम स्थिर रहे हैं ? मृत्युने किस को नहीं पकड़ा ? और विषयों में कौन आसक्त नहीं हुआ ?
कुछ दिन बाद राजा कोकाश का बध करने को तैयार हुआ तो पुरवासियों ने राजा से कहा कि-हे स्वामी ! यह अकार्य करना आपको योग्य नहीं है । एक किली के लिये सम्पूर्ण प्रासाद को कौन तोड़े ? उत्तम पुरुष तो गुण के