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व्याख्यान ५९ :
अत्यन्त सुख में काल निर्गमन किया करता था। एक बार उसका चित्त संसार से वैराग्य पाया, अतः वह दीक्षा लेने को तैयार हुआ परन्तु उसके कोई पुत्र नहीं होने से वह किसी गोत्री को अपना राज्य दे दीक्षा ग्रहण करने का विचार करता था।
. उस समय पाटलीपुत्र के राजा जितशत्रुने इन चार रत्नों को लेने की इच्छा से विचारधवल की राजधानी उज्जेयिनी नगरी को अकस्मात घेर लिया। उस समय काकतालीय न्याय से विचारधवल राजाने शूल के महारोग से कष्ट पा समाधिद्वारा मृत्यु प्राप्त की। महाशूल आदि व्याधियें बहुधा मृत्युपुरुष नाटक की नांदी समान है। कहा है कि
शूल विस अहि विसूइअ, पाणि अ सत्थग्गि संभमेहिं च । देहतरसंकमणं, करेइ जीवो मुहुत्तेण ॥१॥
भावार्थ:-शूलरोग से, विषभक्षण से, सर्पदंश से, विसूचिका से, जल में डूबने से, शस्त्र की चोट से और अग्नि के उपद्रव से तथा ससंभ्रम से जीव एक ही मुहूर्त मात्र में दूसरे देह के अन्दर संक्रमण करता है अर्थात् मर कर दूसरा देह धारण करता है।