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व्याख्यान ५६ :
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नहीं किये हुए कर्मों का भोग (अनुभव) कदापि नहीं होता। यह जीव मोक्ता है इसे समकित का चोथा स्थानक समझना चाहिये । इस प्रसंग पर अग्निभूति गणधर का निम्नलिखित दृष्टान्त प्रसिद्ध है
अग्निभूति का दृष्टान्त मगधदेश के गोबर ग्राम में वसुभूति ब्राह्मण की पृथ्वी नामक स्त्री से दूसरा अग्निभूति नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था। वह भी सोमभट्ट के घर पर यज्ञ कराने के लिये पांचसो शिष्यों सहित गया था। उस समय उससे पहिले उसका ज्येष्ठ भ्राता इन्द्रभूति जिनेश्वर के पास गया था जिसने पराजित हो प्रभु पास दीक्षा ग्रहण की। यह बात जब अग्निभृतिने सुना तो उसने विचार किया कि-मेरा भाई इन्द्रभूति तीनों भव में दुर्जय है, उसको किसीने इन्द्रजाल के बल से (कपट से) भरसा दिया जान पड़ता है और जगद्गुरु मेरे भाई का चित्त भ्रमित कर देना मालुम होता है, अतः अब मैं स्वयं जाकर उसको युक्ति से पराजय करता हूँ। अरे ! मेरे भाई की यह सब से बड़ी भूल है कि-वह सर्वज्ञों में सूर्य समान मुझको यहां छोड़ कर चला गया और इन्द्रजालीने भी यह कैसा अकार्य किया कि-अपनी शक्ति को बिना जाने ही सिंह को आलिंगन किया । परन्तु अब मुझे उसके पास शीघ्रतया जाना चाहिये । इस प्रकार वाणी का आडं.