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व्याख्यान ५८ :
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क्त्व का प्रथम लाभ होते समय प्रथम अंतर्मुहूर्त में होता है। अथवा उपशम श्रेणी पर चढ़े हुए उपशांतमोही को मोह के उपशम से उत्पन्न हुआ वह भी औपशमिक समकित कहलाता है । वह भी अंतर्मुहूर्त में ही रहता है।
२ समकित के प्राप्त होने पर तत्काल अनंतानुबंधी कषाय के उदय से समकित का वमन करते उस समकित के रस का लेशमात्र आस्वाद प्राप्त होता है । यह दूसरा सास्वादन नामक समकित कहलाता है । यह समकित जघन्य से एक समय तक और उत्कृष्ट से छ आवलिका तक रहता है।
३ मिथ्यात्व मोहनीय के उदय में कई का क्षय और कई का उपशम करने से जो सम्यक्त्व गुण प्राप्त हो, वह क्षायोपशमिक समकित कहलाता है ।
४ क्षपकश्रेणी पर चढ़े हुए देही को अनंतानुबंधी चार कषाय का क्षय होने पर मिथ्यात्व मोहनी और मिश्रमोहनी का ठीक तरह से परिपूर्ण क्षय होने पर सम्यक्त्व मोहनी के अन्तिम अंश को भोगते समय क्षायिक समकित के सन्मुख होनेवाला वेदक समकित होता है ।
५ समकित मोहनी, मिश्रमोहनी और मिथ्यात्व मोहनी तथा अनंतानुबंधी चार करायः। इन सात प्रकृति का क्षय