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व्याख्यान ५७ :
: ५२१ : परिनिव्वुआ गणहरा, जीवंते णायए नवजणाओ। इंदभूति सुहम्मो ए, रायगिहे निव्वुए वीरे ॥१॥
भावार्थ:--नो गणधरों ने महावीरस्वामी की हयाती में निवृत्ति पद प्राप्त किया और इन्द्रभूति तथा सुधर्मास्वामी ने राजगृह नगरी में वीरभगवान के निर्वाण बाद मोक्षपद प्राप्त किया (इस प्रकार आवश्यक नियुक्ति में कहा है)। मासं पाउवगया सत्वे वि य सबलद्धिसंपन्ना । वजरिसहसंघयणा समचउरंसाय संठाणा ॥२॥
भावार्थ:--सर्व गणधर सर्व लब्धि से युक्त, वज्रऋषभ. नाराच संघयणवाले, समचतुरस्त्र संस्थानवाले, और अन्त में
एक मास का पादपोपगम अनशन कर मोक्षे सुख को प्राप्त करनेवाले हुए।
बाल्यावस्था (सोलह वर्ष की वय) में ही चारित्र ग्रहण कर प्रभु के पहले ही निवृत्ति सुख पानेवाले मुनिश्रेष्ठ प्रभास -गणधर हमारे प्रभूत (अत्यन्त) उदय के लिये हो । इत्युपदेशप्रासादे चतुर्थस्तंभे सप्तपञ्चाशत्तम
व्याख्यानम् ॥ ५७ ॥ ॥सम्यक्त्व के सडसठ मेद का विवरण संपूर्ण ॥