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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
दीपक का उदाहरण जो सर्वथा नाशरूप से माना है वह योग्य नहीं। इसका यह कारण है कि-दीपक की अग्नि का सर्वथा नाश नहीं होता परन्तु वह अग्नि अन्य परिणाम पाती है । जैसे दूध का परिणाम दहीं आदि होता है उम प्रकार अथवा अन्य परिणाम पाकर चूर्णरूप हुए घट का जैसे सर्वथा नाश नहीं होता उसी प्रकार दीपक की अग्नि का भी सर्वथा नाश नहीं होता। यहां पर यदि किसी को यह शंका हो कि-यदि दीपक की अग्नि का सर्वथा नाश न हो तो उस अग्नि के बुझाने पर साक्षात् क्यों नहीं दिखाई देती ? इसका यह उत्तर है कि-दीपक के बुझान पर शीघ्र ही वह अग्नि अंधकार के पुद्गलरूप परिणाम को पाती है, अतः वह दिखाई नहीं देती क्योंकि वह अति सूक्ष्मतर परिणाम को प्राप्त कर लेती है। जैसे घट का अति सूक्ष्म चूर्ण होकर पृथ्वी के साथ मिलजाने पर बिलकुल दिखाई नहीं देता उस प्रकार अथवा जैसे आकाश में दिखाई देनेवाले श्याम बादल अन्य परिणाम पाकर अति सूक्ष्मतर हो जाने से दिखाई नहीं देते उसी प्रकार दीपक की अग्नि भी अन्य परिणाम पाने से दिखाई नहीं देती क्योंकि पुद् गल के परिणाम अति विचित्र है । जैसे यदि स्वर्ण के छोटे छोटे कतरे किये जाय तो वे चक्षु से देखें जासकते हैं परन्तु यदि उसको शुद्ध करने के लिये अग्नि में डाले जाय और उस स्वर्ण का रस होकर दुल जाने से भस्म में मिल जाय