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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : युक्त गुरु प्राप्त हुए हैं।" ऐसा विचार कर आनन्द से पांच सो शिष्यों सहित छियालीस वर्ष की आयु में उसने (अग्नि
भूतिने) प्रभु के पास दीक्षा ग्रहण की। फिर दस वर्ष तक • छमस्थपन से विहार कर केवलज्ञान प्राप्त किया और सोलह वर्ष तक केवली पर्याय को भोग कर सिद्धपद को प्राप्त किया। (यहां कर्म सिद्धि पर कई युक्तिये हैं जो विस्तार की अपेक्षावाले श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमणद्वारा की हुई महाभाष्य की बड़ी वृत्ति में पढ़ें)।
श्रीजिनेश्वर के वाक्य से कर्म विषयक संदेह का छेदन कर दूसरे गणधर अग्निभूतिने चारित्र ग्रहण कर प्रसादिक जीवों के लिये दयामय आगम की प्ररूपणा कर मुक्तिपद को प्राप्त किया । . इत्युपदेशप्रासादे चतुर्थस्तंभे षट्पञ्चाशत्तमं
व्याख्यानम् ॥ ५६ ॥