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व्याख्यान ५३ :
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उसी श्रेष्ठी के घर में सुदर्शन नामक पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। उसके युवावस्था को प्राप्त होने पर श्रेष्ठीने उसको अन्य श्रेष्ठी की मनोरमा नामक कन्या के साथ विवाह दिया।
सुदर्शन की राजा के पुरोहित और कपिल के साथ प्रगाढ़ मित्रता थी । एक बार कपिल के मुंह से सुदर्शन के रूपादिक गुणों की प्रशंसा सुन कर उसकी स्त्री उस पर अनुरक्त हो गई । एक बार एकान्त समय देख कर वह सुदर्शन के घर पर गई और उससे कहा कि-आज तुम्हारे मित्र का शरीर स्वस्थ नहीं है अतः उसने कहा है कि-उसकी खबर लेने के लिये तुम जल्दी से मेरे घर चले । ऐसा कह कर वह उसे अपने घर ले गई । वहां उसे गुप्त गृह में ले जाकर, दरवाजा बन्द कर, लज्जा का त्याग कर उससे भोग करने की प्रार्थना की। उस समय परस्त्री के विषय में नपुंसक जैसे सुदर्शनने अपने शील की रक्षा करने के लिये कहा कि-हे मुग्धे ! मैं तो नपुंसक हूँ, तु मुझे व्यर्थ प्रार्थना क्यों करती है ? ऐसा कह कर वह वहां से निकल अपने घर चला गया।
एक बार राजा पुरोहित और सुदर्शन को साथ लेकर उद्यान में क्रीड़ा करने के लिये गया। उस समय अभया रानी भी कपिला को साथ ले वाहन में बैठ कर उद्यान में गई। उस समय कपिलाने एक स्त्री को छ पुत्रों सहित मार्ग में जाते देख कर अभया रानी से पूछा कि-यह स्त्री कौन है ?