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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
उसने वन की ओर चल दिया । उस समय भी उसी स्थान पर उसी प्रकार कायोत्सर्ग कर खड़े हुए उस मुनि को देख कर सुभग उनके पास जा पैरों लग बैठ रहा । थोड़ी देर पश्चात् वे चारण मुनि सूर्योदय होने पर "नमो अरिहंताणं" ऐसा बोल कर आकाशगामी हो गये । उसको देख कर सुभगने यह समझ कर कि-" नमो अरिहंताणं" यह आकाशगामी विद्या का मंत्र है, उस मंत्र को याद कर लिया। फिर एक दिन वह सुभग अरिहंत के पास उस पद का ध्यान करते बैठा हुआ था कि-श्रेष्ठीने उसको देख कर पूछा कि-तूने यह मंत्र कहां से सिखा है ? इस प्रकार सुभगने ऐसा कह कर कि-"मुनि के पास से" उसको सारा वृत्तान्त कह सुनाया। यह सुन कर संतुष्ट हो सुभगने उसको सारा नवकार मंत्र सिखला दिया और वह उस मंत्र का सदैव ध्यान करने लगा।
अनुक्रम से वर्षाकाल आगया उस समय भी सुभग ढोर चराने के लिये जाया करता था । एक दिन अत्यन्त वृष्टि होने से पृथ्वी समुद्र सदृश जलमय हो गई । भैंसों को लेकर वापस लौटते समय मार्ग में एक बड़ी नदी आई । वह अत्यन्त जोर से चल रही थी। उसे देख कर आकाश में उड़ने की बुद्धि से नवकार मंत्र का स्मरण कर वह नदी में कूद पड़ा । उस समय एक कीसे के लगने से वह मर कर