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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
से गौतम का संशय दूर किया, अतः पचास वर्ष की आयुवाले उस गौतमने गृहस्थ धर्म का त्याग कर पांचसो शिष्यों सहित भगवान के पास दीक्षा ग्रहण की। फिर भगवानने उसे प्रथम गणधर के पद पर स्थापित किया। सात हाथ ऊँचे देहवाले, अनेक लब्धियों से युक्त, शुद्ध चारित्र के पालन करने से मनःपर्यायज्ञान को प्राप्त हुए, क्षयोपशम समकित से युक्त, यावज्जीव छ? तप करनेवाले, विषय और कषायों को जय करनेरूप गुणों को पानेवाले इन्द्रभूति (गौतम) गणधरने तीस वर्ष तक श्रीमहावीरप्रभु की सेवा की । ___ एक बार श्रीमहावीरस्वामीने अपने निर्वाण का समय समीप आया जान कर गौतम पर अपने राग का नाश करने के लिये उसको (गौतम गणधर को) देवशर्मा नामक ब्राह्मण को प्रतिबोध करने के लिये भेजा। उसके जाने बाद प्रभुने सोलह पहर तक एक धारा से देशना दी। देशना की समाप्ति पर भगवानने अविनाशी मोक्षपद प्राप्त किया। गौतम गणधर देवशर्मा को प्रतिबोध कर वापस जिनेश्वर के पास आरहे थे। मार्ग में प्रभु के मोक्षकल्याण के लिये आये हुए देवताओं के मुह से भगवान का निर्वाण जान वज्र के प्रहार से आघात पाये सदृश महादुःखी चित्त से विचार करने लगे कि-अहो ! कृपासागर प्रभुने यह क्या किया ? कि-ऐसे समय पर मुझे दूर भेज दिया ? क्या मुझे अपने साथ ले