________________
व्याख्यान ५४ :
: ४८५ :
शीघ्र ही उस पुत्र के मर जाने से उसके कुटुम्बी रुदन कर रहे हैं । यह सुन कर विक्रम राजा को वैराग्य उत्पन्न हो गया । उसने विचार किया कि--
बाल्यादपि चरेद्धर्ममनित्यं खलु जीवितम् । फलानामिव पक्वानां,शश्वत्पतनतो भयम् ॥१॥
भावार्थ:-यह जीवन अनित्य है, अतः बाल्यावस्था से ही धर्म का आचरण करना चाहिये क्योंकि पके हुए फल के सदृश जीव को निरन्तर पड़ जाने का (मृत्यु का) भय बना रहता है।
इस प्रकार विचार कर राजाने अपने पुत्र को राज्य पर चेठा कर स्वयं दीक्षा ग्रहण की और अनुक्रम से केवलज्ञान प्राप्तकर मोक्षपद को प्राप्त किया ।
विक्रम राजा के सदृश शुभ भावनाओंद्वारा समकित का सेवन करना चाहिये क्योंकि वैसा करने से वैसी भावनाओं के होने पर दोनों लोक में शुभ का उदय होता है । इत्युपदेशप्रासादे चतुर्थस्तंभे चतुष्पञ्चाशत्तम
व्याख्यानम् ॥ ५४॥