________________
व्याख्यान : २८
: २५५ :
शब्द पीने के अर्थ के लिये उपयोग किया था लेकिन उस की हँसी उड़ाने के लिये हेमाचार्यने पीत शब्द का पीला अर्थ कर उत्तर दिया ) यह सुनकर दिगम्बराचार्य लज्जित होकर नीचे की ओर देखने लगा । फिर दिगम्बराचार्यने पूछा कि - " तुम दोनो में वादी कौन है ?" तब देवसूरिने उसका तिर - स्कार करने के लिये उत्तर दिया कि - " तुम्हारा पराजय करने के लिये ये हेमचन्द्र प्रतिवादी होगा । " दिगम्बराचार्य ने उत्तर दिया कि - " इस बालक के साथ मैं वृद्ध क्या वादविवाद करूं ?" यह सुन कर हेमाचार्यने कहा कि - " हे कुमुदचन्द्र ! मैं तो बड़ा हूँ और तू ही बालक है क्यो कि तूने अभी तक अपनी कमर पर डोर तक नहीं बांधा है और वस्त्र पहना भी नहीं सिखा है तो फिर बालक तू है या मैं हूँ ?" उस प्रकार उन दोनों में होनेवाले वितंडावाद का राजाने निषेध किया । फिर दोनों पक्ष के बीच यह शर्त ठहरी कियदि श्वेताम्बर का पराजय हो तो उनको दिगम्बरपन अंगी - कार करना होगा और दिगम्बर की पराजय हो तो उनको देश का त्याग करना होगा। इस प्रकार की प्रतिज्ञा होने पर स्वदेशकलंक भीरु श्रीदेवसूरि सर्व प्रकार के अनुवाद का परिहार कराने में तत्पर होकर कुमुदचन्द्र को कहा कि - "तुम प्रथम पक्ष करों " इस पर दिगम्बरने प्रथम राजा को आशीर्वाद दिया कि -