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व्याख्यान २९ :
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व्याख्यान २९ वां वाद के योग्य पुरुष के लक्षणों के विषय में नयन्यासप्रमाणानि, प्रोक्तानि यानि शासने । तानि तथैव जानाति, स वादे कुशली भवेत् ॥१॥
भावार्थः-शासन के विषय में जो नय, निक्षेप और प्रमाण कहे गये हैं, उन सब को यथार्थरूप से जाननेवाला वाद करने में कुशल होता है । इस विषय में वृद्धवादी मूरि का दृष्टान्त प्रसिद्ध है, जो इस प्रकार है
वृद्धवादी सूरि का दृष्टान्त विद्याधर गच्छ में श्री पादलिप्तसूरि की परंपरा में खंदिलाचार्य के पास मुकुन्द नामक एक वृद्ध ब्राह्मणने दीक्षा ग्रहण की । वह मुनि रात्री को जोर से स्वाध्याय करने लगा इस पर गुरुने कहा कि-हे वत्स! रात्री को उच्च स्वर से पढ़ना अनुचित है तो उसने दिन में उच्च स्वर से पढ़ना आरम्भ किया, जिस को सुन कर श्रावकोंने हंसते हंसते कहा किक्या यह वृद्ध मुनि पढ़ कर मूसल को नवपल्लवित करेंगे? यह बात वृद्ध मुनि को चुभजाने से उसने विद्याप्राप्ति के लिये सरस्वती देवी की उपासना कर इकवीश उपवास किये। उसकी भक्ति से तुष्टमान होने पर ब्राह्मी देवी से उसको सर्व विद्या सिद्ध होने का वरदान मिला। यह वरदान प्राप्त कर वृद्ध