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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
उस राजर्षि को तेजोलेश्या उत्पन्न हुई और वह पृथ्वी पर यथेष्ट विहार करने लगा।
वह पक्षी मर कर भील हुआ। एक बार उसने उस राजर्षि को विहार करते देख कर पूर्व भव के वैर के कारण उस पर क्रोधित हो यष्टिप्रहार किया, इस पर राजर्षिने मुनिपन का भान भूल कर उसे तेजोलेश्याद्वारा भस्म कर दिया । वह मर कर किसी वन में सिंह बना, वहां भी वह राजर्षि को देख कर पूछ घूमाता हुआ उस पर टूट पड़ा तो उस समय भी मुनिने तेजोलेश्याद्वारा उसको जला डाला । वहां से मर कर वह हाथी हुआ। वह हाथी भी उस मुनि को देख कर उसके ऊपर झपटा तो उसको भी मुनिने जला दिया। फिर वह हाथी वन का सांढ हुआ तो उसको भी मुनिने जला दिया। वहां से वह सांढ सर्प बन मुनि को काटने को दौड़ा तो उस समय भी मुनिने उसको मार डाला, तत्पश्चात् वह सर्प ब्राह्मण हुआ और मुनि की निन्दा करने लगा तो अनुक्रम से मुनिने उसको भी भस्म कर दिया। अहो ! निर्विवेकी को संवर किस प्रकार हो सकता है ? ___ इस प्रकार ममता रहित होने पर भी मुनिने सात हत्याओं की। योगीश्वर हो कर भी ऐसे पाप कर्म किये । अहो ! कर्म की कैसी विचित्र गति है ? फिर वह ब्राह्मण