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व्याख्यान ४३ : .
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भावार्थ:-"क्या विधाताने यह विचार कर कि-मैं इस नारी को देख कर अन्य नारीयों को सृजन करूंगा, इस कन्या का सृष्टि के आदि में प्रथम सृजन कर यहां रक्खा है ?" अर्थात् इस कन्या का रूप इतना सुन्दर है किइसको देख देख कर ही ब्रह्माने अन्य स्त्रियों को बनाया हो ऐसा जान पड़ता है, अतः अन्य स्त्रिये इससे कम रूपवंत दिखलाई पड़ती है।
इस प्रकार विचार करता हुआ वह राजपुत्र उस कन्या के समीप गया। उसने उसको योग्य आसन दिया। जिस पर बैठ कर राजपुत्रने उस कन्या को शोकातुर देख कर उस से प्रश्न किया कि-" हे भद्र ! तू शोकातुर क्यों हैं ? " इस पर उस कन्याने उत्तर दिया कि-" हे भाग्यशाली ! मैं विजय राजा की अनंगलेखा नामक पुत्री हूँ। एक बार मैं अपने महल के झरोखे में बैठी हुई थी कि-विद्याधरने मेरा हरण कर मुझे यहां लाकर, यह नगर बसा कर रखा है और वह इस समय मेरे साथ विवाह करने की अभिलाषा से विवाह की सामग्री लेने के लिये गया हुआ है । वह आज ही यहां आकर बलात्कारपूर्वक मेरे साथ विवाह करेगा परन्तु मुझे खेद इस बात का है कि कुछ समय पूर्व मुझे एक ज्ञानी मुनिने कहा था कि-'हे राजपुत्री! हरिवाहन नामक राजपुत्र तेरा पति होगा।' अतः उस मुनि के वचन असत्य