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व्याख्यान ४४:
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अतः उसके लिये आज एक दिन के लिये इस चोर को मुक्त कर मेरे सिपुर्द करा दीजिये ।" राजाने इसे स्वीकार कर उस चोर को रानी के सिपुर्द करा दिया । रानीने एक हजार महरों का व्यय कर उस चोर का स्नान, भोजन, अलंकार
और वस्त्रों आदि से सत्कार किया और संगीत आदि शब्दादिक विषयों से उसको सम्पूर्ण दिन आनन्द में रक्खा । दूसरे दिन उसी प्रकार लक्ष सुवर्ण का व्यय कर दूसरी रानीने उस चोर का पालन किया। तीसरे दिन तीसरी रानीने कोटी द्रव्य का व्यय कर उसी प्रकार उसका सत्कार किया । चोथे दिन अन्तिम छोटी रानीने राजा से वरदान मांग कर उसकी अनुमति से अनुकंपाद्वारा उस चोर को मृत्यु के भय से मुक्त करा दिया, इसके अतिरिक्त अन्य कोई सत्कार नहीं किया। तीनो बड़ी रानीयोंने उस छोटी रानी की हँसी उड़ाई कि-"देखो ! इस छोटी रानीने इसको न तो कुछ दिया ही है न इसके लिये कुछ खर्च ही किया है।" छोटी रानीने उत्तर दिया कि-"तुम तीनों के बनिस्बत मैंने इसका अधिक उपकार किया है। तुमने तो इसका कुछ भी उपकार नहीं किया।" इस प्रकार उन रानियों के बिच उपकार के विषय में जब बड़ा भारी वादविवाद होने लगा तो उनका न्याय करने के लिये राजाने उस चोर को ही बुला कर पूछा कि-" तेरे पर इन चारों में से किसने अधिक उपकार किया है ? यह सुन कर चोरने उत्तर दिया कि