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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
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पीड़ा पाने लगा तो उसके पुत्र सुलसने पिता की शान्ति के लिये मनोवाञ्छित खानपान, सुन्दर गीतगान, सुकुमार पुष्पशय्या, और सुगंधी चन्दन के लेप आदि अनेकों उत्तम उपचार उनको किये तिस पर भी इन से उसको लेशमात्र भी सुख नहीं मिला परन्तु अधिक दाह उत्पन्न होने लगा, इससे सुलसने अभयकुमार के पास जाकर सारा वृत्तान्त कह सुनाया जिसे सुन कर अभयकुमार ने कहा कि तेरा पिता नरक में जानेवाला है इससे नरक की आनुपूर्वी उसके सन्मुख नाचती जिससे सुख के उपचार मात्र दुःख के ही कारणभूत सिद्ध होते हैं । इस लिये अब निरस भोजन देने, खारा जल पिलाने, गधे और कुत्तों के शब्द सुनाने, तीक्ष्ण कांटे की शय्या पर सुलाने और अशुची का विलेपन करने आदि विरुद्ध उपचार से उसको सुख प्राप्त होगा । अभयकुमार के कहने से सुलसने वैसे ही उपचार किये जिससे कालशौकरिक को कुछ सुख मिला । अन्त में वह मर कर सातवीं नरक में गया । उसका पुत्र सुलस पाप का प्रत्यक्ष फल देखने से तथा अभयकुमार के उपदेश से श्रीमहावीरस्वामी का बारह व्रतधारी श्रावक हुआ ।
एक बार सुलस को उसकी माता, बहिन आदि स्वजनोंने मिलकर कहा कि तू तेरे पिता के सदृश पापकर्म कर | इस पर उसने उत्तर दिया कि मैं वैसे पापकर्म कभी भी नहीं कर सकता क्योंकि उन पापों का भोक्ता मैं ही होता