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कर उसके पिता के नाम की मुद्रा उस बालक की अंगुली में पहिना उसके वस्त्र तथा देह की शुद्धि करने के लिये समीपवर्ती एक सरोवर पर गई । सरोवर में रहनेवाले जल हस्तीने उसको अपनी सूंड से पकड़ कर आकाश में उछाला । उस समय आकाशमार्ग से कोई खेचरेन्द्र नंदीश्वर द्वीप की यात्रा निमित्त विमान में बैठ कर जा रहा था । उसने उसको झेल लिया और अपने विमान में बिठा लिया। उस समय उस मदनरेखाने रुदन करते हुए अपने पुत्र प्रसव तथा उस पुत्र को मार्ग में छोड़ देने की बात उस विद्याधर के राजा से कही । यह सुन कर उसने विद्या के बल से उस पुत्र का स्वरूप जान कर कहा कि - हे भद्रे ! तू चिन्ता न कर, विपरीत शिक्षा पाये हुए अश्व से हरे हुए मिथिला नगरी के राजा पद्मरथने तेरे पुत्र को उठा कर उसे उसकी पुत्र रहित प्रिया को दे दिया है । अतः तू अब उस विषय का विषाद त्याग कर मुझे पतिरूप से स्वीकार कर । यह सुन कर मदनरेखा ने कहा कि - हे पूज्य ! पहले मुझे नंदीश्वर की यात्रा कराइये फिर मैं आपके मनोरथ को पूर्ण करने का यत्न करूंगी । यह सुन कर विद्याधरेंद्र उसको नंदीश्वर द्वीप को ले गया। वहां बावन जिनबिंबों को वन्दन कर वह विद्याघर तथा मदनरेखा वहां रहनेवाले मणिचूड़ नामक चक्रवर्ती राजर्षि के पास जा, वन्दना कर उसके समीप ही बैठे ।
व्याख्यान ५२: :