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श्री उपदेशप्रासाद भौषान्तर :
त्वं वृथा मा कृथाः खेदं, महाभाग! मनागपि । सर्वत्र प्राक्कृतं कर्म, प्राणिनामपराध्यति ॥१॥
भावार्थ:--हे प्रिय ! हे महाभाग्यवान् ! तुम किंचित् मात्र भी वृथा खेद मत करना क्योंकि पूर्वकृत कर्म ही सर्वत्र प्राणी का अपराध करते हैं। तस्मान्मनः समाधेहि, विधेहि शरणं जिनम् । ममत्वं मुश्च मैत्री च, कुरु सर्वेषु जन्तुषु ॥२॥
भावार्थ:-अतः हे प्राणेश ! तुम अपने मन को समाधि में रखो, जिनेश्वर की शरण लो, ममता का त्याग करो और सर्व जन्तुओं के विषय में मैत्रीभाव रक्खो।
इस प्रकार प्रिया के वचनों से कोप शान्त कर पंचपर. मेष्ठी मंत्र का स्मरण करता हुआ वह युगबाहु मर कर पांचवें देवलोक में देव हुआ। ___ मदनरेखाने जेठ की कुनिष्ठा जान कर अपने शील का रक्षण करने के लिये अपने युवान पुत्र तथा धन आदि का त्याग कर गर्भवती होते हुए भी रात्री में ही वहां से अन्यत्र प्रयाण कर दिया । चलते चलते वह एक महाभयंकर अरण्य में आ पहुंची । उस बन में सिंह और शार्दूल आदि के भयंकर शब्द से त्रास पाती हुई उस सतीने वहां ही पुत्रप्रसव किया । बाद में उस बालक को रत्नकंबल में लपेट