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व्याख्यान ५२ :
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वचन कहना अनुचित है । ऐसा कह कर उसने दासी को विदा किया । दासीने इसी प्रकार राजा को जाकर सारा वृत्तान्त कह सुनाया, जिसको सुन कर राग से लुब्ध हुए राजाने विचार किया कि-यदि मैं मेरे भाई को मारडालूं तो वह अवश्य मेरे आधीन हो जायगी, ऐसा किये बिना मेरा मनोरथ सिद्ध होना कठीन है । ऐसा विचार कर राजा उसके भाई को बध करने का उपाय सोचने लगा।
एक बार वसंतऋतु में क्रीड़ा करने के लिये युगबाहु अपनी प्रिया को साथ ले उद्यान में गया और चिरकाल क्रीड़ा कर रात्रि होने पर वहां (उद्यान में) ही कदली गृह के अन्दर प्रिया सहित सो रहा । राजाने यह सुअवसर जान कर गुप्त रीति से खड्ग ले जब उस कदली गृह में प्रवेश किया तो युगबाहु को अपनी प्रिया सहित निद्रावश पाया, अतः शीघ्र ही कुलमर्यादा का उल्लंघन कर यश, धर्म और लज्जादिक का त्याग कर खडूगद्वारा अपने भाई का शिरच्छेद कर दिया। सचमुच कामदेव का उदय ऐसा ही होता है । फिर राजाने अपने घर की ओर चल दिया । राजाने अपने भाई पर ज्योंहि खड्ग का प्रहार किया कि-मदनरेखा जग उठी। उसने देखा कि-राजाने ही यह अकृत्य किया है, अत: वह उस समय मौन रही और राजा के जाने पश्चात् अपने पति का अवसानकाल जान कर विलाप करती हुई गद् गद् कंठ से कहने लगी कि