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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
____अचकारी की इस कथा को सुन कर जो सुबुद्धिमान दुःख में भी धर्म का त्याग नहीं करते वे अल्पकाल ही में मोक्षलक्ष्मी को प्राप्त करता हैं । इत्युपदेशप्रासादे चतुर्थस्तंभे पञ्चाशत्तम
व्याख्यानम् ॥ ५० ॥
व्याख्यान ५१ वा
गुरुनिग्रह नामक आगार पितृमातृकलाचार्या, मिथ्यात्वभक्तिचेतसः । कारयन्ति यथेच्छं ते, तद्गुरुनिग्रहो भवेत् ॥१॥
भावार्थ:--पिता, माता और कलाचार्य यदि मिथ्यात्ववासित चित्तवाले हों और वे अपनी इच्छा से कोई निषिद्ध कार्य करायें तो वह गुरुनिग्रह कहलाता है। अर्थात् गुरुनिग्रह से नियमभंग करना पड़े तो उसका कोई दोष नहीं लगता क्योंकि वह आगार रखा गया है ।
गुरुनिग्रह अर्थात् गुरु के आदेश से नियमभंगादि करना । गुरु किस को कहते हैं ? माता पिता कलाचार्य, एतेषां ज्ञातयस्तथा । वृद्धा धर्मोपदेष्टारो, गुरुवर्गः सतां मतः ॥१॥