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व्याख्यान ५० :
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इन्द्र के इन शब्दों पर श्रद्धा नहीं होने से कोई नास्तिक देव उसके घर आया और दासी जो तैल का कुंभ लेकर आ रही थी उस कुंभ को दैवी शक्ति से घिरा कर फोड़ दिया । इस पर अचंकारीने कुछ भी क्रोध न कर दूसरा कुंभ लाने को कहा, उसको भी देवने फोड़ दिया। इस प्रकार तीसरा कुंभ भी फोड़ दिया तो अच्चंकारी स्वयं कुंभ लाने को गई जिसको दैव उसके शील के प्रभाव से न फोड़ सका। उस घड़े में से अचंकारीने मुनि को तैल वहोराया । मुनिने कहा कि-हे भद्र ! हमारे लिये तेरे तीन घड़े फूट गये जिससे तुझे बहुत हानि हुई है परन्तु फिर भी दासी पर कोप न करना। यह सुन कर अचंकारी हास्य करती हुई बोली-हे पूज्य ! मैंने क्रोध तथा मान का फल इसी भव में अनुभव कर लिया है। ऐसा कह कर मुनि के पूछने पर उसने अपना सर्व वृत्तान्त कह सुनाया, जिसे सुन कर अदृश्य हुआ देव भी प्रत्यक्ष हो गया और इन्द्रद्वारा उसकी की हुई प्रशंसा का हाल बता, तोड़े हुए तीनों घड़ों को ठीक कर उसकी प्रशंसा करता हुआ स्वस्थान को गया और उस तैल से दग्ध मुनि को सज्ज किया।
. अचंकारी भट्टा गर्व का त्याग कर, श्रावक धर्म का प्रतिपालन कर, समाधिमरण कर, देवताओं के सुख का अनुभव कर अन्त में मोक्षपद को प्राप्त करेगी।
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