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व्याख्यान ५० :
प्रयोग किया परन्तु शील के प्रभाव से वह भस्म न हो सकी । उस समय उसने कहा कि हे तापस! मैं वह बगली नहीं हूँ । यह सुन कर विस्मित हो तपस्वीने उससे पूछा कि तू ने यह हाल कैसे जान लिया ? उसने उत्तर दिया कि इस प्रश्न का उत्तर तुझे बाराणसीपुर का कुम्हार देगा । यह सुन कर तपस्वीने वहां जाकर कुम्हार से पूछा । इस पर उसने उत्तर दिया कि - उस स्त्री को तथा मुझे शील के प्रभाव से ज्ञान उत्पन्न हो गया है इससे हम दोनों इस बात को जानते हैं, अतः हे तापस ! तू भी शील पालने का प्रयत्न कर । यह सुन कर तपस्वी आश्चर्यचकित हो शील की प्रशंसा करता हुआ स्वस्थान को लौट गया ।
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यह वार्ता सुन कर पल्लीपति भट्टा के शाप से भयभीत हो उससे विरक्त हुआ और उसको किसी पुरुष को बेंच दिया । वह पुरुष भी उसको लेजाकर बब्बर कुल की नीच जाति में बेच आया । उसने भी भोग के लिये प्रार्थना की परन्तु जब उसने स्वीकार नहीं किया तो वह कारक कहने लगा कि - यदि तुझे अन्न-वस्त्रादि सुख की अभिलाषा हो तो मेरा कहना स्वीकार कर । यह सुन कर भट्टा को व्रत सम्बन्धी तीसरे आगार का ज्ञान होने पर भी उसने अपने निश्चय को न छोड़ा। इस पर उसने क्रोधित हो उसके शरीर में से रुधिर निकाल कर उसको एक वर्तन में डाला ।