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व्याख्यान ५० :
को मनोहर युवावस्था में आई जान कर राजा के मंत्रीने उसके पिता से उसकी याचना की । इस पर श्रेष्ठीने उत्तर दिया कि-मैं मेरी पुत्री उसी पुरुष को दूंगा कि-जो इसके वचनों का कभी उल्लंघन न करें। मंत्री के इस शर्त को स्वीकार करने पर श्रेष्ठीने शुभ दिवस को अपनी पुत्री का लग्न उसके साथ कर विषय सुख का अनुभव करते कई दिन व्यतीत हो गये। एक बार उसने मंत्री से कहा कि-हे प्राणनाथ ! आप राज्य के बड़े अधिकारी हैं किन्तु यदि आप को मेरे साथ प्रीति निभाने की इच्छा हो तो सूर्यास्त के पश्चात् कहीं भी नहीं जाना, अन्यथा प्रीति का रहना कठीन है। यह सुन कर मंत्रीने उसके वचनों को सहर्ष स्वीकार किया।
एक दिन राजाने मंत्री से पूछा कि-हे मंत्री! तुम सदैव घर जल्दी क्यों चले जाते हो ? इस पर मंत्रीने सब वृत्तान्त सत्य सत्य कह सुनाया । यह सुन कर राजाने विनोद के लिये किसी मिष से मंत्री को रात्री के दो पहर तक रोक कर बाद में जाने की आज्ञा दी । मंत्री घर पहुंचा तो घर का दरवाजा बंद पाया । इसलिये उसने पुकार किहे प्रिया! दरवाजा खोल । आज राजाज्ञा से इतना विलंब हो गया है, मेरी इच्छा से मैं नहीं ठहरा हूँ अतः मुझ पराधीन पर क्रोध न कर। इस प्रकार बारंबार पुकार करने पर भट्टाने कुपित हो एकदम द्वार खोला और मंत्री की दृष्टि