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व्याख्यान ५० वां .
वृत्तिकांतार नामक आगार दुर्भिक्षारण्यसंपर्के, जीवनाथ विधीयते । मिथ्यात्वं स च कान्तारवृत्तिनाम निगद्यते ॥१॥ . भावार्थ:-दुष्काल के कारण अन्नादिक के अभाव से या अरण्य में मार्ग भूल जाने पर जल, फल आदि के अभाव से यदि अपने जीवन की रक्षा के लिये मिथ्यात्व का सेवन करना पड़े तो इसे "कांतारवृत्ति" आगार कहते हैं।
उत्सर्ग अपवाद के ज्ञाता किसी संविज्ञ पुरुष को भी अपने जीवन के लिये मिथ्यात्व का सेवन करना पड़े या नियम भंग करना पड़े तो इसे वृत्तिकांतार नामक तीसरा आगार कहते हैं। कई उत्सर्ग मार्ग में दृढ़ प्राणी तो अचंकारी भट्टा के सदृश कष्ट पड़ने पर भी स्वधर्म को नहीं छोडते हैं।
अचंकारी भट्टा की कथा क्षितिप्रतिष्ठित नगर के धन्ना श्रेष्ठी के भद्रा नामक स्त्री से आठ पुत्रों के पश्चात् एक भट्टा नामक पुत्री उत्पन्न हुई। श्रेष्ठीने उस पर अतिशय प्रेम होने से सर्व स्वजनों को एकत्रित कर कहा कि-इस मेरी पुत्री को कोई कुछ भी नहीं कहना । इससे सब उसको अचंकारी भट्टा कहने लगे। उस