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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : नीचे डाल दिये जाने पर उस वृद्ध हंसने संकेत किया किसब उड़ उड़ कर भग गये और चिरकाल तक जीवित रहे । उस समय वृद्ध हंसने कहा किदीग्घकालं वयं तत्थ, पायवे निरुवहवे । मूलाओ उद्विया वल्ली, जायं सरणतो भयम् ॥१॥
भावार्थ:-हम दीर्घकाल तक इस उपद्रव रहित वृक्ष पर रहे किन्तु बाद में इस वृक्ष के मूल में से ही बेल उठी (जिससे हम मृत्यु के भय में आ गिरे) अतः शरणदाता से ही भय उत्पन्न हुआ।
इस प्रकार की वार्ता कह कर इन्द्रदत्तने कहा कि-हे राजा ! इस जगत का ऐसा नियम है कि-पिता से डरा हुआ पुत्र माता की शरण में जाता है, माता से उद्वेगित पुत्र पिता की शरण में जाता है, दोनों से डराया हुआ राजा की शरण में जाता है और राजा से भी उद्वेग पाया हुआ महाजनों की शरण में जाता है । अब जहां माता स्वयं ही विष देता है, पिता गला घोटता है, राजा ऐसे कार्य में प्रेरणा करता है और महाजन द्रव्य देकर ऐसा कार्य स्वयं कराते हैं तो फिर किस की शरण लेना ? क्योंकि मातापिताने पुत्र को दे दिया, राजा शत्रु बन कर घात करने को उद्यत हो गया, देवता बलिदान के इच्छुक है तो फिर लोग क्या करें ? अतः हे राजा! अब मुझे भय रख कर क्या