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व्याख्यान. ४९ :
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अतः सब उस पाश में फंस गये और पुकार मचाने लगे तो वृद्ध हंसने कहा कि-तुमने पहले मेरे कहनेनुसार नहीं किया जिससे यह मृत्यु प्राप्त हुई है। वे बोले-हे पिता ! हमने जिस लता के अंकुर को शरण के लिये रक्खा था वह ही आज हमारी मृत्यु का कारण बन गई, अब हमको इस से बचने का उपाय बतलाइयें । कहा भी है कि
चित्तायत्तं धातुबद्धं शरीरं, नष्टे चित्ते धातवो यान्ति नाशम् । तस्माञ्चितं यत्नतो रक्षणीयं, स्वस्थे चित्ते बुद्धयः संभवन्ति ॥१॥
भावार्थ:-यह सप्त धातु से बना हुआ शरीर चित्त के आधीन है, चित्त का यत्न से रक्षण करना चाहिये क्योंकि चित्त के स्वस्थ होने से बुद्धि उत्पन्न होती है। ... वृद्ध हंसने कहा कि-हे पुत्रों ! प्रातःकाल तुम सब मरे हुए के सदृश तद्दन स्तब्ध हो जाना, किंचित् मात्र भी हिलना-डुलना मत कि जिससे तुम को मरे हुए जान कर पारधी ऐसे के ऐसे नीचे फैक देगा; अन्यथा तुम्हारे कंठ मरोड़ कर पीछे नीचे डालेगा। सबोंने वृद्ध के कथनानुसार करना स्वीकार किया। प्रातःकाल पारधीने आकर देखा तो सब को मरे हुए जाना, अतः विश्वास से सब को जाल में से निकाल निकाल कर नीचे डाल दिया। सब हंसो के