________________
व्याख्यान ४६ :
: ४१७ :
कांत मणि का महल बना कर कल्पवृक्ष की शाखा के साथ पलंग बांध उस पर तुम्हारी पुत्री को रक्खो । वहां सूरसेनx राजा का पुत्र संग्रामसूर आवेगा जो इसका पति होगा ।" इस प्रकार उस निमित्तियें के कहने से मेरे पिताने वैसा ही कर मुझे यहां रक्खा है। यहां रहते हुए मुझे कई दिनों के पश्चात् आज तुम्हारे दर्शन हुए हैं।"
इस प्रकार वे दोनों परस्पर प्रेमवार्ता कर ही रहे थे कि उस समय हाथ में नंगी तलवार लिये हुए, तालमताल वृक्ष सदृश श्याम और भयंकर कपालवाला एक राक्षस एकाएक वहां प्रगट होकर कुमार से कहने लगा कि--" हे कुमार ! मैं सात दिन से भूखा हूँ। तू मेरे भक्ष्य के साथ लग्न करने की क्यों कर अभिलाषा करता है ?" ऐसा कह कर वह राक्षस मणिमंजरी को झाँझर सहित पैर से निगलने लगा जिसे देख कर कुमारने अत्यन्त जोर से उस पर खड्ग का प्रहार किया परन्तु उस खड्ग के राक्षस को किसी भी प्रकार के चोट पहुंचाये बिना ही दो टुकड़े हो गये तो कुमारने उसके साथ बाहु युद्ध आरम्भ किया जिस में भी राक्षसने कुमार को धराशायी कर बांध दिया। फिर राक्षसने उससे कहा कि-" हे राजपुत्र ! यदि तुझे तेरी प्रिया को छोड़ाना हो
x राजा का नाम पहिले संग्रामदृढ़ बतलाया गया है।