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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : जीवहिंसा स्वयं करुंगा न कराउंगा और न करने का अनु. मोदन ही करुंगा इसलिये अब तुम जैसा चाहो वैसा करो।" इस पर महाजनोंने राजा से प्रार्थना की कि-हे स्वामी! हम सब कुछ करलेगें परन्तु आप मौन ही रहना । इस पर राजाने कहा कि-प्रजा के किसी भी पाप का छट्ठा हिस्सा राजा के भाग में आता है । कहा भी है कि
यथैव पुण्यादिसुकर्मभाजां, षष्ठांशभागी नृपतिः सुवृत्तः । तथैव पापादिकुकर्मभाजां,
षष्ठांशभागी नृपतिः कुवृत्तः ॥१॥ भावार्थ:--जिस प्रकार पुण्यादिक सुकर्म करनेवाले मनुष्यों के पुण्य का छट्ठा भाग राजा को मिलता है उसी प्रकार पापादिक कुकर्म करनेवाले मनुष्यों के पाप, का छट्ठा हिस्सा भी राजा को मिलता है ।
महाजनोंने फिर कहा कि-हे स्वामी ! इस पाप का सब भाग हमारे सिर पर पड़ेगा इस में आप का कोई भाग नहीं होगा आदि बाते बना कर उन्होंने महाप्रयत्न से राजा को मौन रहना स्वीकार कराया। फिर महाजन लोगोंने अपने घर से द्रव्यं निकाल कर एकत्रित कर स्वर्ण का एक पुरुष बनाया । उसे गाड़ी में रख सारे नगर में फिरा कर यह घोषणा कराई कि-यदि कोई माता अपने पत्र को अपने