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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
तो मुझे अन्य कोई स्त्री या तेरी स्थूलकाया नामक दासी को खाने के लिये दे अथवा कदाच यह भी न कर सके तो मेरे गुरु चरक परिव्राजक को प्रणाम कर या मेरे प्रासाद में विष्णु की मूर्ति के साथ जिनप्रतिमा भी हैं उसको तू प्रणाम कर, पूजा कर या मेरी ही प्रतिमा करवा कर उसकी तू सदैव पूजा किया कर; अन्यथा मैं इसको पूरी की पूरी खाजाउंगा।" यह सुन कर कुमारने कहा कि - " हे राक्षस ! चाहे मेरे जीवन का ही अन्त क्यों न हो जाय परन्तु मैं जिनेश्वर तथा सुसाधु के अतिरिक्त अन्य को नमस्कार कदापि नहीं कर सकता तथा बिना प्रयोजन जब मैं स्थावर जीव की भी हिंसा नहीं करता तो दूसरे जीवों की हिंसा करने देने की तो बात करना ही वृथा है । हे देव ! तुझे भी इस प्रकार बोलाना अनुचित है ।" यह सुन कर राक्षसने कहा कि - "हे राजपुत्र ! तो तूं इस जिनालय में चल और वहां जो वीतराग का बिम्ब है उसी की तू पूजा कर । यह बात स्वीकार कर कुमार हर्षपूर्वक उस जिनालय में गया तो उस बिम्ब को बौद्ध लोगों द्वारा पूजा किया हुआ पाया इससे वह तुरन्त ही वहां से वापस लौट आया और बोला कि - " हे देव ! चाहे मेरा शिरच्छेद क्यों न कर दिया जाय परन्तु मैं तेरे वचनों का पालन नहीं कर सकता ।" उसका इस प्रकार दृढ़ निश्चय जान कर राक्षस मणिमंजरी को पैर से निगलने लगा । उस
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