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व्याख्यान ४८ :
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का मैं पालन करूंगा । राजाभियोग आगार होने से राजाज्ञा से निषिद्ध कार्य करने में भी व्रत का भंग नहीं होता है ऐसा विचार कर श्रेष्ठीने राजाज्ञा को पालन करना स्वीकार किया । फिर गैरिक तापस को भोजन कराने के लिये जब श्रेष्ठी राजा के घर गया और भोजन परोसने लगा तो तापसने अपने नाक पर अंगुली रख कर संकेत किया कि - " तेरा नाक कट गया । " यह देख कर श्रेष्ठीने विचार किया कि - यदि मैंने प्रथम ही से दीक्षा ग्रहण की होती तो आज तापस को मेरा इस प्रकार पराभव करने का अवसर प्राप्त न होता । ऐसा विचार कर उसने एक हजार और आठ वणिकपुत्रों सहित दीक्षा ग्रहण की ।
अनुक्रम से द्वादशांगी का अभ्यास कर बारह वर्ष संयम पालन कर सौधर्मेन्द्र हुआ । गैरिक तापस भी मर कर अपने धर्म के प्रभाव से उसी सौधर्मेन्द्र का अरावण हाथी * हुआ | उसने विभंगज्ञानद्वारा कार्तिक श्रेष्ठी को पहचान कर भगना चाहा परन्तु इन्द्रने उसको पकड़ कर उस पर स्वारी की । इन्द्र को भयभीत करने के लिये उस रावणने अपने दो रूप बनाये तो इन्द्रने भी दो रूप बनाये । हाथीने चार
x देवलोक में तिर्यंच नहीं होते हैं परन्तु उस कार्य के करनेवाले आभियोगिक देव को इन्द्र की आज्ञा होने से औरावण हाथी का रूप बना कर अपना धर्म पालन करना पड़ता है ।
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