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व्याख्यान ४६ :
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यह सुन कर संग्रामसूरने श्रावक धर्म अंगीकार किया और राजा को यह बात ज्ञात होने पर उसने उसको वापस नगर में बुला कर युवराज पद प्रदान किया।
इधर कुमार का परम मित्र मतिसागर चिरकाल से द्रव्य उपार्जन करने के निमित्त समुद्र पार गया था। वह जब बहुत-सा धन उपार्जन कर वापस लौटा तो अपने मित्र राजकुमार से मिलने को गया । उससे कुमारने कुशल वार्ता पूछ कर द्वीप समुद्र आदि में जो आश्चर्यदायक बात देखी हो उसका वर्णन करने को कहा तो मतिसागरने उत्तर दिया कि-" हे मित्र ! मैं जहाज में बैठ कर जब समुद्र में जा रहा था तो मैंने भरतखंड की मर्यादा में एक ऊँचे कल्पवृक्ष की शाखा पर झुला डाल कर झुलेरूप पर्यक पर झुलती हुई एक सुन्दर स्त्री को देखा । वह स्त्री समग्र स्त्रियों की तिलकरूप थी । उसके संगीत शब्द से तो मानो उसने किंनरी एवं देवांगनाओं को भी किंकर(दासी)रूप बना दिया था। एसी रूप एवं लावण्यवती स्त्री को देख कर कौतुक से मैंने मेरा जहाज उसकी ओर खेंचा परन्तु मैं उसके पास पहुंचा इतने में तो वह मेरे मनोरथ के साथ ही साथ कल्पवृक्ष सहित समुद्र में निमग्न होगई । वह आश्चर्य केवल तुम्हारे सामने प्रकट किया है।" यह सुन कर कामदेव के बाण से जर्जरित अंगवाला वह राजकुमार शीघ्र ही अपने