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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
से उसके सेवकद्वारा उसका लक्ष मोहर का हार उस बणिक के घर में उसके गहने के डिब्बे में रखा दिया। फिर सारे नगर में दिढोरा पिटवा कर सब लोगों में घोषणा कराई कि-" राजा का हार किसीने चुरा लिया है, अतः जो कोई शीघ्रतया लाकर राजा के सिपुर्द कर देगा उसको कुछ नहीं कहा जायगा परन्तु बाद में फिर किसी के घर में पाया जायगा तो उसको कठीन दंड दिया जायगा।" यह सब घोषणा सुन कर भी किसीने हार नहीं लौटा दिया । फिर राजाज्ञा से राजसेवक नगर में प्रत्येक घर की तलाशी लेने लगे। अनुक्रम से खोज करते करते जय बणिक के घर से वह हार खोज निकाला, अतः राजपुरुष उसको बांध कर राजा के समीप ले गये । राजाने जब उसके बध की आज्ञा दी तब किसीने भी उसे नहीं छुड़वाया। उसके स्वजन राजा की प्रार्थना करने लगे तब राजाने कहा कि-" यदि यह मेरे घर से तैल से लबालब भरा हुआ पात्र लेकर, उसमें से एक भी बूंद को मार्ग में न गिरने देते हुए, सारे नगर में घूम कर वापस मेरे पास लौट आवे तो मैं इसको मृत्यु दंड से मुक्त कर सकता हूँ, अन्यथा कदापि नहीं।" यह सुन कर जयश्रेष्ठिने मृत्यु के भय से वैसा ही करना स्वीकार किया। तत्पथात् पद्मशेखर राजाने नगर में घोषणा कराई कि-" मार्ग में स्थान स्थान पर वीणा, वांसुरी और मृदंग आदि बजाये जायें, अति मोह उत्पन्न करनेवाली और सुन्दर वेश धारण