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व्याख्यान ४५ वां
आस्तिक्यता नामक पांचवां लक्षण
प्रभुभिर्भाषितं यत्तत्तत्त्वान्तरश्रुतेऽपि हि । निःशंकं मन्यते सत्यं, तदास्तिक्यं सुलक्षणम् ॥ १॥
भी
भावार्थ:- अन्य तत्व ( मत) का श्रवण करते हुए " प्रभुने जो कहा है वह ही सत्य है " ऐसा जो बिना किसी शंका के माना जाय उसे आस्तिक्य नामक चोथा लक्षण कहते हैं । इस विषय पर पद्मशेखर राजा की कथा प्रसिद्ध है
पद्मशेखर राजा की कथा
पृथ्वीपुर के पद्मशेखर राजाने विनयंधरसूरि से प्रतिबोध प्राप्त कर जैनधर्म अंगीकार किया था। वह जैनधर्म की आराधना में तत्पर होकर अपनी सभा के समक्ष निरन्तर गुरु का इस प्रकार वर्णन किया करता था कि
निवर्तयत्यन्यजनं प्रमादतः, स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते । गृणाति तत्त्वं हितमिच्छुरङ्गिनां, शिवार्थिनां यः स गुरुर्निंगद्यते ॥ १ ॥