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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
उदय हो जाय और कदाच चन्द्र अंगारों की वृष्टि करने लग जाय परन्तु फिर भी वह सती स्त्री अपने प्राणान्त तक अपने शील का भंग नहीं कर सकती।
तिस पर भी हे सचिव ! यदि तेरा स्वामी कदाग्रह का त्याग न करता हो तो मैं उसको ले आती हूँ परन्तु इस के बाद फिर कार्य के लिये तू मेरा स्मरण कभी भूलकर भी न करना ।" ऐसा कह कर उस स्त्री के पास जा उसका हरण कर उसको राजा के समीप रख कर वह देवी अदृश हो गई । राजाने उस अनंगलेखा का स्वरूप देख कर मोहित हो उसकी अनेक प्रकार से प्रार्थना की। इस पर उसने. उत्तर दिया कि-" हे राजा ! मैं प्राणान्त तक अपने शील का खंडन नहीं कर सकती।" यह सुन कर राजाने विचार किया कि-"स्त्रिये तो स्वभाववश मुंह से नहीं नहीं ही कहती रहती है परन्तु जब यह मेरे आधीन है तो मैं धीरे धीरे इसके दृढ़ चित्त को भी प्रसन्न करुंगा। नीतिशास्त्र में भी कहा कि-सहसा कोई कार्य नहीं करना चाहिये।" ऐसा विचार कर उसको ऐकान्तस्थल में रख गजा स्वस्थान को लौट गया और अनंगलेखा अपने भर्तार का स्मरण करती हुई वहीं रही।
___ अरण्य में हाथी के भय से त्रासित होकर भगे हुए वे दोनों मित्र जो राजकुमार से पृथक् हो गये थे उन्होंने फिरते