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व्याख्यान ४३ :
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राजा ! मैं अब तुम्हारे आधीन हूँ, परन्तु मैंने अष्टापदगिरि की यात्रा करने का नियम ले रक्खा है, अतः उस नियम के पूर्ण होने पर इच्छित सुखों का भोग कर सकूँगी।" यह सुन कर उस कामान्ध राजाने मधुर वचनोंद्वारा उन मंत्रवादियों को अष्टापद की यात्रा कराने की प्रार्थना की । इस पर उन्होंने मंत्र शक्तिद्वारा एक विमान बनाया जिसको देख कर राजाने अनंगलेखा से कहा कि-" हे प्रिया ! इस विमान में बैठ तेरा अभिग्रह पूर्ण कर, शीघ्रतया वापस आ
और मेरा मनोरथ पूर्ण कर ।” यह सुन कर उसने कहा •कि-" हे राजा ! मैं उन अनजान पुरुषो के संग जाती हूँ, अतः तुम्हारी दो कन्याओं को मेरे साथ भेजिये कि-जिससे उनके साथ सुखपूर्वक वार्ताविनोद कर सकू।" यह सुन कर राजाने अपनी दो कन्याओं को उसके साथ भेजा। तत्पश्चात् वह उन दोनों कन्याओं के साथ जिस विमान में वे दोनों मित्र बैठ हुए थे बैठी और शीघ्र ही विमान को आकाशगामी बनाया। थोड़ी दूर जाकर उन दोनों मित्रोंने राजा से कहा कि-" हे दुष्ट राजा ! अब तू इन तीनों स्त्रियों को वापस देखने की आशा छोड़ देना।" यह सुन कर वह राजा अत्यन्त दुःखी होकर विलाप करने लगा परन्तु उसका सब रोना चिल्लाना वृथा हुआ। _____ अब मित्र के दुःख का नाश करने के लिये उन दोनों मित्रोंने हरिवाहन के पास जाकर विमान को उतारा । जिस