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व्याख्यान ४३ :
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कर अत्यन्त खेदित हुए । बहुत कुछ खोज की गई किन्तु जब उस मत्स्य का कही भी पत्ता न चला तो वे निराश हो स्वस्थान को लौट गये ।
वह मत्स्य घूमता फिरता बेनातट पहुंचा जहां वह किसी मच्छुआ की जाल में पकड़ा गया । उसको चीरने पर उसके पेटे से कंचुक निकला जिसको मच्छुआने लेजा कर अपने राजा के भेट किया। जिसको देख कर राजाने विचार किया कि - " विश्व को मोहनेवाली इस कंचुक को पहननेवाली कौन होगी कि - जिसका कंचुक तक मुझे मोहित कर लेता है ? वह स्त्री मुझे किस उपाय से प्राप्त हो सकती है ?" आदि चिन्ता में मग्न होकर उस राजाने अपने प्रधान से कहा कि - " यदि तुम को मेरा जीवन प्रिय हो तो सात दिन के अन्दर इस कंचुक को पहननेवाली स्त्री का पत्ता लगा कर लाओ । " यह सुन कर मंत्रीने खूब विचार कर राजेश्वरी देवी की आराधना की, इस पर देवीने प्रगट हो वरदान मांगने को कहा । मंत्रीने कहा कि - " इस कंचुक को पहिननेवाली स्त्री को लाकर मेरे राजा को सिपुर्द करो ।" यह सुन कर देवीने उत्तर दिया कि - " हे सचिव !
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उदेति यदि वारुण्यां, भानुश्चांगारभुक् शशी । तथापि सा सती शीलं प्राणान्तेऽपि न लुम्पति ॥ १ ॥ भावार्थ:-- यदि कदाचित सूर्य पश्चिम दिशा में भी
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