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व्याख्यान ४३ : ...
: ३८५ : हुए देखा । उसे देख कर सुथार तथा वणिक पुत्र तो मारे भय के कौए के समान भग गये किन्तु राजपुत्रने शूरवीर होने से उस मदोन्मत्त हाथी को सिंहनादद्वारा चेष्टा रहित कर दिया । फिर अपने दोनों मित्रों की खोज करता हुआ वह राजपुत्र आगे बढ़ा किन्तु उसको उनका कहीं पत्ता न चला । अनुक्रम से घूमते घूमते उसे एक मनोहर सरोवर दिखलाई पड़ा । उस सरोवर में स्नान कर राजपुत्र उसके उत्तर दिशावाले उद्यान में घुसा। उस उद्यान में सुन्दर कमल से सुशोभित एक बावड़ी थी, अतः कौतुकवश वह उस बाव में उतरा । उस बाव के मध्यभाग में एक गुप्तद्वार था जिस में उसने प्रवेश किया तो वहां एक यक्ष का मंदिर देखा । उस समय रात्रि हो जाने से वह राजपुत्र उस यक्ष के मन्दिर में ही सो रहा । थोड़ीसी देर में नूपुर के रणरण शब्द करती हुई कई अप्सरायें वहां आकर यक्ष के सामने नृत्य करने लगी। नृत्य करने के पश्चात् अपने श्रम का नाश करने के लिये उन अप्सराओंने अपने अमूल्य वस्त्रों का वहीं पर त्याग कर बाव में स्नान करना आरम्भ किया । उस समय राजपुत्रने यक्षमन्दिर का द्वार खोल कर उन सब वस्त्रों को उठा लिये और मन्दिर में घुस कर द्वार बन्द कर लिये । अप्सरायें स्नान कर जब बाहर निकली तो क्या देखती है कि उनके वस्त्र गायब है तो वे आपस में कहने लगा कि-" सचमुच हमारे वस्त्र किसी धूर्तने हर लिये है