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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : प्राप्त हो गया। देवताओंने उसकी महिमा का बखान किया जिसको देख कर उन चारों तपस्वियोंने विचार किया कि-"अहो ! सचमुच यह मुनि ही भावतपस्वी है जब किहम चारे द्रव्य तपस्वी है" ऐसा विचार कर उन चारों तपस्वियोंने उस केवली से क्षमा याचना की। उस समय मन, वचन और काया की शुद्धि से खमाते हुए उन चारों को भी एक ही साथ चरमज्ञान (केवलज्ञान) प्राप्त हो गया और अनुक्रम से उन पांचों केवलीने मोक्षपद को प्राप्त किया।
शांति, क्षमा, क्षांति, शम आदि नामोंने इस गुण के सूत्रों में समकित का प्रथम लक्षण कहा गया है । यह शम गुण धर्म प्रथम गुण होकर अन्तिमज्ञान को देनेवाला है, अतः भव्य जीवो! तुम्हे इस शमता गुण को धारण करना चाहिये । इत्युपदेशप्रासादे तृतीयस्तंभे एकचत्वारिंशत्तम
व्याख्यानम् ॥ ४१ ॥